रविवार, 31 अक्तूबर 2021

मेरी डायरी के पन्नों पर

 1.


*मेरी डायरी के पन्नों पर*


न जाने कितने चराग़

रोज़ रोशन होते हैं...

मेरी डायरी के पन्नों पर..

तन्हा लम्हों में...


हर्फ़ों की महफ़िल मे

होता है मुसलसल

शब ए वस्ल का जश्न

खुद से रूबरू होकर

समेट लेती हूँ क़ायनात....

मेरी डायरी के पन्नों पर..

तन्हा लम्हों में....


एक एक हर्फ़

पढती हूँ कई कई बार...

झूम उठती हूँ

किसी पल को फ़िर जीकर...

और सहला देती वो लम्हा

जो लाया था सैलाब...

मौजूद हैं दर्द , तो मरहम भी...

मेरी डायरी के पन्नों पर..

तन्हा लम्हों में...


वक्त की करवटों से मिले ईनाम

सूखे हुए फ़ूलों के निशान

क़तरा क़तरा ज़िंदगी का

कुछ हादसे,कोई जीत,कोई मुकाम...

पैवस्त हर शिकस्त...

मेरी डायरी के पन्नों पर...

तन्हा लम्हों में....


फटे हुए पन्नों को

फिर से जोड़ लेती हूँ मैं..

कुछ सबक जो याद रखने हैं

उन पन्नों को थोड़ा मोड़ देती हूं मैं...

इल्तज़ा यही कि इसे..

कोई न पढ़े मेरे गुज़र जाने के बाद...

बेइंतहा दर्द होता है बिखर जाने के बाद...

मेरी तन्हाई,मेरी हमसफ़र

ये है मुझसे मेरा मिलन....

मेरी डायरी के पन्नों पर...

तन्हा लम्हों में.....



*नम्रता सरन "सोना"*

 *दंश*


"जॉय, बंटी, इशान...आओ ना, हम लोग फुटबॉल खेलेंगे" शुभ रोज़ की तरह अपने साथियों को आवाज देकर खेलने के लिए बुला रहा था।

"नहीं यार, अभी नहीं" इशान ने बालकनी से जवाब दिया और तुरंत अंदर चला गया, सोफे पर धम्म से बैठते हुए, मोबाइल में आंखें धंसाए रहा।

बाकी बच्चे भी बाहर नहीं निकले, सभी मोबाइल गेम में व्यस्त थे, शुभ रोज़ की तरह फुटबॉल पर अकेले ही शॉट मारते हुए उदास मन से चला गया।

अगले दो-तीन दिनों तक वह दिखाई नहीं दिया, तो जॉय की मम्मी ने यूं ही पूछ लिया-

जॉय, क्या बात है आजकल शुभ नहीं दिखाई दे रहा, ठीक तो है न वह"

"बिल्कुल ठीक है मम्मी, ये देखिए, अब वो भी ऑनलाइन हो गया है"


*नम्रता सरन"सोना"*