*संजीवनी*
इंजीनियरिंग की डिग्री तो थी लेकिन नौकरी नहीं, माता पिता की हर रोज़ प्रश्न करती आंखों से घबराकर अनय आज एक भयानक फैसला करके घर से बाजार की तरफ निकला।
"हां भाई , क्या लेना है?" दुकानदार ने पूछा।
"एक मोटी और मज़बूत रस्सी "अनय धीरे से बोला।
"किसलिए चाहिए? काम बताओ,उस हिसाब से दिखाऊं"दुकानदार बोला।
"जी ,वो..."अनय कुछ सकुचाया, लेकिन दुकानदार भांप गया।
"अबे, तू तो अनय पांडे है न, शास्त्री इंजीनियरिंग कॉलेज" दुकानदार ने पूछा।
"हं..हं.. हां, अरे आप तो निश्छल भैय्या है न, हमारे सीनियर " अनय ने दुकानदार को पहचानते हुए कहा।
"हां, सही ताड़ा, क्यों बे , रस्सी क्यों चाहिए, लटकना है, नौकरी नहीं मिल रही?" निश्छल ने एकसाथ कई प्रश्न दागे।
"ज..,ज..जी भैय्या,वो क्या है न कि .. अरे पर आप .. आप इंजीनियर होकर ये परचून की दुकान पर " अब अनय ने प्रश्न किया।
"बेटा ऐसा है कि, नौकरी तो अब मिलती नहीं, तो तेरी तरह सब लटक जाए?, अरे नौकरी न मिले तो न सही, लेकिन जीना छोड़कर, बुजदिली का सबूत देने वालों में से हम नहीं, अरे यार मां बाप ने हमारे लिए कितना कुछ किया है तो क्या हम उन्हें, ये सिला दें, खून के आंसू रोने के लिए छोड़ जाएं और हम निकल लें , पतली गली से, नहीं यार, नौकरी ही सब कुछ नहीं, बाजुओं में दम है और हौंसले बुलंद हो तो कोई भी काम शुरु कर दो, लग जाओ शिद्दत से, बस सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी, समझा बच्चे " निश्छल ने अनय का हाथ , अपने हाथों में लेकर कहा।
"बोल, दूं क्या रस्सी?" निश्छल ने फिर चुटकी ली।
अनय मुस्कुराया और बोला -
"नहीं भैय्या, आपने तो संजीवनी दे दी है, अब मरना नहीं, जी कर दिखाना है"
*नम्रता सरन "सोना "*
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